इज़राइल-ईरान War: एक जटिल युद्ध और इसके वैश्विक प्रभाव सीजफायर और आगे की राह!

इज़राइल-ईरान War: हाल ही में इज़राइल और ईरान के बीच हुए सीधे सैन्य टकराव ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है। यह सिर्फ दो देशों के बीच का संघर्ष नहीं, बल्कि एक ऐसा भू-राजनीतिक उथल-पुथल है जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। आइए, इस जटिल युद्ध को आसान भाषा में समझते हैं, इसके नुकसान, प्रभावों और वैश्विक नीतियों पर इसके असर को जानते हैं।

इज़राइल-ईरान War की पृष्ठभूमि: क्यों टकराए इज़राइल और ईरान?

इज़राइल और ईरान के बीच दुश्मनी दशकों पुरानी है। इज़राइल ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानता है, वहीं ईरान इज़राइल को एक “अवैध संस्था” करार देता है। यह दुश्मनी अक्सर प्रॉक्सी वॉर (परोक्ष युद्ध) के ज़रिए सामने आती रही है, जिसमें ईरान लेबनान के हिजबुल्लाह और गाजा के हमास जैसे समूहों को समर्थन देता है, जो इज़राइल के खिलाफ हैं।

हालांकि इज़राइल-ईरान War टकराव 13 जून 2025 को तब शुरू हुआ जब इज़राइल ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया। इज़राइल का दावा था कि ईरान गुपचुप तरीके से परमाणु हथियार विकसित कर रहा है। इसके जवाब में, ईरान ने भी इज़राइल पर मिसाइलों और ड्रोन से जवाबी हमला किया। 12 दिनों तक चले इस सीधे टकराव ने मध्य पूर्व में बड़े युद्ध की आशंका को बढ़ा दिया था।


नुकसान और क्षति: किसका कितना नुकसान?

12 दिनों तक चले इस सीधे टकराव में दोनों देशों को भारी नुकसान हुआ है। हालांकि, दोनों पक्ष अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि दोनों तरफ जान-माल का नुकसान हुआ है:

  • ईरान को नुकसान:
    • मानवीय क्षति: ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट्स इन ईरान (HRANA) के अनुसार, इज़राइली हमलों में ईरान में 900 से अधिक लोग मारे गए हैं और 3,000 से ज़्यादा घायल हुए हैं। ईरानी स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी सैकड़ों मौतों और हज़ारों घायलों की पुष्टि की है। इनमें कई सैनिक और नागरिक शामिल हैं।
    • परमाणु और सैन्य ठिकानों को क्षति: इज़राइल ने ईरान के नतांज, फोर्डो और पार्चिन जैसे प्रमुख परमाणु और सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया। रिपोर्टों के अनुसार, नतांज में 15,000 सेंट्रीफ्यूज नष्ट या क्षतिग्रस्त हुए हैं, जिससे ईरान का यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम कई साल पीछे चला गया है।
    • आर्थिक नुकसान: अनुमान है कि ईरान को इस युद्ध में लगभग 150-200 बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ है। मीडिया रिपोर्टिंग पर ईरान सरकार की पाबंदी के कारण वास्तविक नुकसान का आकलन करना मुश्किल है।
  • इज़राइल को नुकसान:
    • मानवीय क्षति: ईरानी हमलों में इज़राइल में कम से कम 28 लोग मारे गए हैं, जिनमें बीरशेबा में नागरिक भी शामिल हैं। सैकड़ों लोग घायल हुए, कई लोगों को तनाव और घबराहट के कारण अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
    • संपत्ति का नुकसान: इज़राइल के शहरों जैसे तेल अवीव, हाइफा और बीरशेबा में कई इमारतें और नागरिक बुनियादी ढांचा क्षतिग्रस्त हुआ है। इज़राइल टैक्स अथॉरिटी के अनुसार, ईरानी मिसाइल और ड्रोन हमलों से संपत्ति के नुकसान का अनुमान लगभग 5 बिलियन NIS (लगभग 1.47 बिलियन डॉलर) है, जो 7 अक्टूबर के बाद हुए अन्य हमलों से हुए नुकसान से भी ज़्यादा है।
    • सैन्य उपकरणों पर असर: रिपोर्टों के अनुसार, इज़राइली सैन्य कुछ प्रमुख हथियारों और गोला-बारूद की कमी का सामना कर रहा है, खासकर 12 दिनों के इस युद्ध के बाद। दुनिया ने पहली बार इज़राइल के आयरन डोम एयर डिफेंस सिस्टम को भारी दबाव में काम करते देखा।

देश-विदेश की नीतियां और वैश्विक प्रभाव

इज़राइल-ईरान संघर्ष के क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर गंभीर निहितार्थ हैं:

  1. वैश्विक तेल बाज़ार पर असर:
    • हॉर्मुज़ जलडमरूमध्य: दुनिया के समुद्री तेल व्यापार का लगभग एक-तिहाई हिस्सा हॉर्मुज़ जलडमरूमध्य से होकर गुज़रता है, जो ईरान के पास है। यदि यह मार्ग बंद होता है, तो कच्चे तेल की कीमतों में भारी उछाल आ सकता है (अनुमानित $130 प्रति बैरल तक), जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और महंगाई बढ़ेगी।
    • आर्थिक मंदी का खतरा: एसबीआई रिसर्च के अनुसार, यदि कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो भारत की जीडीपी ग्रोथ भी प्रभावित हो सकती है। वैश्विक स्तर पर भी आर्थिक मंदी का खतरा बढ़ जाएगा।
  2. परमाणु अप्रसार पर खतरा:
    • इज़राइल के हमले ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों को नष्ट करने के उद्देश्य से थे। यदि ईरान यह मानता है कि उसके पास परमाणु हथियार नहीं होने के कारण उस पर हमला हुआ है, तो यह उसे परमाणु हथियार बनाने के लिए और अधिक दृढ़ कर सकता है, जिससे मध्य पूर्व में परमाणु हथियारों की होड़ शुरू हो सकती है।
  3. क्षेत्रीय अस्थिरता और संघर्ष का विस्तार:
    • यह संघर्ष मध्य पूर्व में बड़े पैमाने पर युद्ध की आग को और भड़काने की क्षमता रखता है। इससे शरणार्थियों का संकट बढ़ सकता है और पड़ोसी देशों पर भी दबाव पड़ सकता है।
    • क्षेत्रीय शक्तियों जैसे सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और तुर्की की भू-राजनीतिक स्थिति भी प्रभावित होगी।
  4. अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर प्रभाव:
    • अमेरिका की भूमिका: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस संघर्ष में युद्धविराम कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अमेरिका का ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला करना, एक ऐसा कदम था जिससे अमेरिका दशकों से बच रहा था। यह अमेरिका की मध्य पूर्व नीति में एक बड़ा बदलाव है।
    • भारत पर असर: भारत के लिए यह युद्ध कूटनीतिक, रणनीतिक और आर्थिक रूप से कई सबक लेकर आया है। भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिए मध्य पूर्व पर निर्भर है, इसलिए क्षेत्र में स्थिरता उसके लिए महत्वपूर्ण है। भारत ने संघर्ष को कम करने और शांति स्थापित करने में मदद करने की इच्छा व्यक्त की है।
    • चीन की भूमिका: चीन ने इस संघर्ष पर गहरी नज़र रखी है और ईरान के साथ अपने तेल व्यापार को जारी रखने की बात कही है। चीन क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनने की कोशिश कर रहा है।
  5. सीजफायर और आगे की राह:
    • 12 दिनों के युद्ध के बाद भले ही युद्धविराम की घोषणा हो गई हो, लेकिन स्थिति अभी भी नाज़ुक है। दोनों देशों के बीच तनाव बहुत गहरा है और किसी भी समय फिर से भड़क सकता है।
    • संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक संगठन दोनों पक्षों से युद्धविराम का सम्मान करने और कूटनीति के माध्यम से मुद्दों को हल करने का आग्रह कर रहे हैं।

निष्कर्ष

इज़राइल-ईरान संघर्ष केवल एक सैन्य टकराव नहीं, बल्कि एक जटिल भू-राजनीतिक चुनौती है जिसके मानवीय, आर्थिक और रणनीतिक प्रभाव पूरे विश्व पर पड़ रहे हैं। इस संघर्ष ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मध्य पूर्व में शांति कितनी अस्थायी है और तनाव कभी भी गंभीर रूप ले सकता है। वैश्विक समुदाय के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह इस क्षेत्र में स्थिरता लाने और बातचीत के ज़रिए समाधान खोजने के लिए सक्रिय भूमिका निभाए, ताकि इस विनाशकारी संघर्ष को और बढ़ने से रोका जा सके।

क्या आपको लगता है कि यह युद्ध मध्य पूर्व के स्थायी शांति प्रयासों के लिए एक बड़ी बाधा बनेगा?

 

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