परिचय: चुनावी ‘जादूगर’ से जनकल्याण के पथिक
एक सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ जो अफ्रीका के गाँवों में काम करता था, उसने अचानक भारतीय राजनीति के सबसे शक्तिशाली ‘ट्रेंडसेटर’ (Trendsetter) का खिताब हासिल कर लिया। हम बात कर रहे हैं प्रशांत किशोर (पीके) की। यह कहानी सिर्फ चुनावी रणनीतियों की नहीं है, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति की है जिसने सत्ता के शिखर को छूने के बाद, उसे छोड़कर जनकल्याण के कठिन रास्ते पर चलने का फैसला किया।
यह उनकी प्रेरणादायक यात्रा है—उनके जन्म से लेकर 2025 में बिहार की धूल भरी सड़कों पर चल रही उनकी विशाल ‘जन सुराज’ पदयात्रा तक।
1. शुरुआती जीवन और यूनिसेफ का अनुभव
जन्म और शिक्षा: प्रशांत किशोर का जन्म 1977 में बिहार के रोहतास जिले में हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा बिहार और तेलंगाना में हुई, जहाँ उन्होंने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। इसके बाद, उन्होंने सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त की।
संयुक्त राष्ट्र में सेवा: राजनीतिक दुनिया में कदम रखने से पहले, पीके ने लगभग आठ साल तक संयुक्त राष्ट्र (UN) के साथ काम किया। यूनिसेफ (UNICEF) में रहते हुए, उन्होंने अफ्रीका में बच्चों के पोषण और स्वास्थ्य पर बड़े पैमाने के कार्यक्रम चलाए। इस दौरान उन्होंने बड़े डेटा को समझने, ज़मीनी हकीकत को पकड़ने और बड़े अभियानों के प्रबंधन का अमूल्य अनुभव प्राप्त किया—जो बाद में उनके राजनीतिक करियर की नींव बना।
2. भारत वापसी और ‘चुनावी गुरु’ का उदय (2014)
जब अधिकांश राजनीतिक अभियानों का आधार जाति, धर्म या पारंपरिक रैलियाँ हुआ करती थीं, प्रशांत किशोर ने चुनावी रणनीति में डेटा विश्लेषण, ब्रांडिंग और आधुनिक संचार तकनीक का समावेश किया।
2014 का निर्णायक मोड़: प्रशांत किशोर ने 2014 के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद के अभियान की कमान संभाली। उन्होंने ‘सिटिजन्स फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस’ (CAG) का गठन किया और ‘चाय पे चर्चा’, ‘रन फॉर यूनिटी’ और सोशल मीडिया पर आक्रामक अभियानों के माध्यम से मोदी को ‘विकास पुरुष’ के रूप में स्थापित किया। इस ऐतिहासिक जीत ने उन्हें रातोंरात भारतीय राजनीति के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में पहचान दिलाई।
3. सफलता की असाधारण श्रृंखला (2015-2021)
2014 के बाद, पीके ने अपनी कंपनी आईपैक (I-PAC) की स्थापना की और कई क्षेत्रीय दलों को जीत दिलाई। उनका रिकॉर्ड बताता है कि चुनावी जीत के लिए उनका स्पर्श ‘सोने’ जैसा था:

वर्ष | राज्य/पार्टी | परिणाम | अभियान की पहचान |
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2015 | बिहार (जेडीयू-आरजेडी गठबंधन) | जीत | ‘बिहारी बनाम बाहरी’, महागठबंधन को स्थापित किया। |
2017 | पंजाब (कांग्रेस) | जीत | ‘कैप्टन फॉर पंजाब’, स्थानीय जड़ों पर ज़ोर। |
2019 | आंध्र प्रदेश (वाईएसआरसीपी) | भारी जीत | ‘प्रजा संकल्प यात्रा’ (पदयात्रा) की सफलता। |
2021 | पश्चिम बंगाल (टीएमसी) | प्रचंड जीत | ‘बांग्लार निजेर मेयेके चाय’ (बंगाल को अपनी बेटी चाहिए)। |
2021 में राजनीतिक सन्यास: पश्चिम बंगाल की जीत के तुरंत बाद, प्रशांत किशोर ने चौंकाने वाला ऐलान किया: उन्होंने व्यावसायिक रणनीतिकार के रूप में काम करना बंद कर दिया। उन्होंने कहा कि वह अब सिर्फ जीत-हार के लिए काम नहीं करेंगे, बल्कि “सार्थक राजनीति” के लिए ज़मीनी स्तर पर काम करेंगे।
4. ‘जन सुराज’ का संकल्प और पदयात्रा (2022-2025)
यह उनकी यात्रा का सबसे प्रेरणादायक चरण है, जहाँ उन्होंने आरामदायक दफ्तरों को छोड़कर बिहार की जनता के बीच जाने का संकल्प लिया।
जन सुराज (Jan Suraaj)
प्रशांत किशोर ने ‘जन सुराज’ नामक एक सामाजिक-राजनीतिक मंच शुरू किया। इसका उद्देश्य किसी राजनीतिक दल को स्थापित करना नहीं, बल्कि बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर ‘सही लोगों’ की पहचान करना है—ऐसे लोग जो जाति और वंश की राजनीति से ऊपर उठकर सुशासन और विकास के लिए काम कर सकें।
ऐतिहासिक पदयात्रा (2022 से 2025 तक)
महात्मा गांधी की जयंती, 2 अक्टूबर 2022 को, पीके ने पश्चिम चंपारण से अपनी महत्वाकांक्षी पदयात्रा शुरू की। यह यात्रा बिहार के हर कोने में लाखों लोगों से सीधा संवाद स्थापित करने के लिए डिज़ाइन की गई थी।
2025 तक की स्थिति: इस पदयात्रा के दौरान, प्रशांत किशोर ने बिहार के लगभग सभी प्रमुख जिलों को कवर किया है। उन्होंने हजारों किलोमीटर की दूरी तय की है, गाँवों में रातें बिताई हैं, और लाखों आम नागरिकों से उनके जीवन की समस्याओं पर सीधे चर्चा की है। यह पदयात्रा उन्हें चुनावी रणनीतिकार से एक सच्चे ‘जननेता’ की ओर ले जा रही है, जो सिर्फ वोट नहीं, बल्कि विचार और व्यवहार में बदलाव लाना चाहते हैं।
निष्कर्ष: प्रेरणा का स्रोत
प्रशांत किशोर की कहानी हमें सिखाती है कि सफलता केवल ऊँचाईयाँ छूने में नहीं है, बल्कि उन ऊँचाइयों को छोड़कर वापस ज़मीन पर आकर अपनी जड़ों के लिए काम करने में भी है।
एक वैश्विक पेशेवर से देश के सर्वश्रेष्ठ चुनावी रणनीतिकार और फिर एक निःस्वार्थ पदयात्री बनने तक का उनका सफर यह साबित करता है कि:
- रणनीति और क्रियान्वयन (Strategy and Execution) ही शक्ति है।
- सबसे बड़ा परिवर्तन सबसे कठिन मार्ग से ही आता है।
- जब आपका उद्देश्य पैसा या पद नहीं, बल्कि जनता का कल्याण हो, तो आपकी कहानी सबसे अधिक प्रेरणादायक बन जाती है।
2025 में, प्रशांत किशोर और ‘जन सुराज’ की यात्रा बिहार के भविष्य के लिए एक नई उम्मीद जगा रही है, जो जाति-आधारित राजनीति को छोड़कर योग्यता और सुशासन पर आधारित होगी। उनकी यह अथक पदयात्रा हमें याद दिलाती है कि समाज में बदलाव लाने के लिए हमें खुद सड़क पर उतरना पड़ता है।