मध्य प्रदेश में 73% आरक्षण के बचाव में महाभारत का हवाला, उठा ‘हिंदू विरोधी’ होने का विवाद

मध्य प्रदेश के हलफनामे में 73% जातिगत आरक्षण को सही ठहराने के लिए रामायण और महाभारत का हवाला दिया गया
मध्य प्रदेश सरकार ने 30 सितंबर, 2025 को सर्वोच्च न्यायालय में एक हलफनामा दायर किया, जिसमें 2024 के लोक सेवा संशोधन अधिनियम के तहत नौकरियों और शिक्षा में जाति-आधारित आरक्षण को बढ़ाकर 73% करने का बचाव किया गया है। इसमें जातिगत सर्वेक्षण के आधार पर अनुसूचित जातियों के लिए 15%, अनुसूचित जनजातियों के लिए 21%, अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27% और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10% आरक्षण आवंटित किया गया है। इस दस्तावेज़ में ऐतिहासिक जातिगत पदानुक्रम को दर्शाने के लिए रामायण और महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों के अंश शामिल हैं, जिसकी भारतीय जनता पार्टी समर्थकों ने आलोचना की और इसे हिंदू विरोधी करार दिया। अधिकारियों ने 1 अक्टूबर को स्पष्ट किया कि ये संदर्भ 1983 की महाजन आयोग की रिपोर्ट से लिए गए हैं, जो ऐतिहासिक संदर्भ के लिए है, न कि समर्थन के लिए, क्योंकि अदालत की 8 अक्टूबर की सुनवाई से पहले विरोध प्रदर्शन जारी हैं।
भोपाल/नई दिल्ली। मध्य प्रदेश सरकार ने सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में जाति-आधारित आरक्षण को बढ़ाकर 73% करने के अपने फैसले को सुप्रीम कोर्ट में मजबूती से डिफेंड किया है। राज्य सरकार ने 30 सितंबर, 2025 को सुप्रीम कोर्ट में एक विस्तृत हलफनामा (affidavit) दाखिल किया, जिसने आरक्षण की सीमा के साथ-साथ इसमें इस्तेमाल किए गए ऐतिहासिक संदर्भों के कारण एक नया विवाद खड़ा कर दिया है।

73% आरक्षण का गणित

मध्य प्रदेश सरकार ने 2024 के लोक सेवा संशोधन अधिनियम (Lok Seva Amendment Act) के तहत आरक्षण की सीमा को बढ़ाया है, जिसे राज्य में कराए गए एक जाति सर्वेक्षण (Caste Survey) के निष्कर्षों पर आधारित बताया गया है। नए कोटे का विवरण इस प्रकार है:

  • अनुसूचित जाति (SC): 15%
  • अनुसूचित जनजाति (ST): 21%
  • अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC): 27%
  • आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS): 10%

इस तरह, कुल आरक्षण की सीमा 73% तक पहुँच गई है, जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50% की सीमा से काफी अधिक है।

प्राचीन ग्रंथों के उद्धरण पर बवाल

हलफनामे का सबसे विवादास्पद पहलू यह था कि इसमें रामायण और महाभारत जैसे प्राचीन भारतीय ग्रंथों के अंशों को शामिल किया गया था। इन उद्धरणों का उपयोग ऐतिहासिक काल से चली आ रही जातिगत पदानुक्रम (historical caste hierarchies) और सामाजिक असमानता की पृष्ठभूमि को दर्शाने के लिए किया गया था, जिसका उद्देश्य संभवतः आरक्षण की आवश्यकता को कानूनी रूप से मजबूत करना था।

हालांकि, इन धार्मिक ग्रंथों का हवाला देना तुरंत ही विवादों के घेरे में आ गया। भारतीय जनता पार्टी (BJP) के कुछ समर्थकों और संबंधित संगठनों ने सरकार के इस कदम की कड़ी आलोचना की। उनका आरोप था कि हलफनामे में प्राचीन ग्रंथों के अंशों को गलत तरीके से पेश किया गया है और यह कार्रवाई ‘हिंदू विरोधी’ (Anti-Hindu) है।

सरकार ने दिया स्पष्टीकरण

विवाद गहराने के बाद, 1 अक्टूबर को सरकारी अधिकारियों ने सामने आकर मामले को शांत करने का प्रयास किया। अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि हलफनामे में दिए गए रामायण और महाभारत के संदर्भ सीधे तौर पर सरकार द्वारा नहीं डाले गए थे।

दरअसल, ये उद्धरण 1983 की महाजन आयोग रिपोर्ट (Mahajan Commission report) का हिस्सा थे, जिसे केवल ऐतिहासिक संदर्भ (historical context) और पृष्ठभूमि की जानकारी के रूप में हलफनामे में संलग्न किया गया था। अधिकारियों ने जोर देकर कहा कि इन अंशों का उपयोग केवल ऐतिहासिक तथ्यों को सामने रखने के लिए किया गया था, न कि प्राचीन ग्रंथों की सामग्री का समर्थन करने के लिए।

कोर्ट की सुनवाई पर टिकी निगाहें

एक तरफ जहां राजनीतिक गलियारों में इस मामले पर गरमागरम बहस और राज्य भर में विरोध प्रदर्शन जारी हैं, वहीं दूसरी तरफ सभी की निगाहें अब सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं।

सुप्रीम कोर्ट इस आरक्षण नीति की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 8 अक्टूबर को सुनवाई करने वाला है। इस सुनवाई के दौरान, सरकार के इस 73% कोटे का भविष्य निर्धारित होगा, और यह भी स्पष्ट होगा कि कानूनी दस्तावेजों में ऐतिहासिक या धार्मिक ग्रंथों के संदर्भों का उपयोग किस हद तक मान्य है।


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