लद्दाख, जिसे 2019 में जम्मू-कश्मीर से अलग कर यूनियन टेरिटरी बनाया गया था, आज फिर सुर्खियों में है। यहाँ लोग राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची और लोकल रोजगार सुरक्षा की मांग कर रहे हैं। हाल ही में हुए प्रदर्शनों में हिंसा, कर्फ्यू और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप ने हालात को और जटिल बना दिया है। लद्दाख की जनता का कहना है कि यूनियन टेरिटरी बनने के बाद से उनके पास विधानसभा या स्थानीय सरकार का अधिकार नहीं है। फैसले दिल्ली से होते हैं, जिससे स्थानीय लोगों की संस्कृति, जमीन और नौकरियों पर खतरा महसूस होता है।
लद्दाख में भूख हड़ताल और हिंसा का बिगड़ता माहौल :
10 सितंबर से सोनम वांगचुक और कई पूर्व सैनिकों ने भूख हड़ताल शुरू की थी, ताकि सरकार से संवाद तेज हो सके। 23 सितंबर को दो प्रदर्शनकारियों की हालत बिगड़ने पर उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा। 24 सितंबर को लेह में हालात बिगड़ गए और विरोध हिंसक हो गया। प्रदर्शनकारियों ने बीजेपी ऑफिस, पुलिस वाहनों और LAHDC बिल्डिंग में आगजनी की। पुलिस ने भीड़ को रोकने के लिए फायरिंग और आंसू गैस का इस्तेमाल किया। इस दौरान चार लोगों की मौत हो गई और अस्सी से ज्यादा लोग घायल हुए, जिनमें CRPF जवान भी शामिल थे। पचास से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया।
कर्फ्यू और प्रशासनिक सख़्ती
25 सितंबर की सुबह लेह में सख्त कर्फ्यू लागू कर दिया गया। पाँच से अधिक लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगाई गई और बाजार पूरी तरह बंद रहे। भारी संख्या में पुलिस और पैरामिलिट्री बल तैनात किए गए और सीमा क्षेत्रों में भी अलर्ट जारी किया गया। दोपहर तक स्थिति शांत हो गई लेकिन तनाव अब भी बना हुआ है।
केंद्र सरकार और संवाद की कोशिशें :
केंद्र सरकार ने 25 और 26 सितंबर को संवाद की बात कही है और 6 अक्टूबर को एक हाई पावर कमिटी की बैठक प्रस्तावित की है, लेकिन प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यह बहुत देर से लिया गया निर्णय है और उन्हें लगता है कि केंद्र ने उनकी मांगों को गंभीरता से नहीं लिया।
राजनीति और आरोप-प्रत्यारोप
गृह मंत्रालय ने सोनम वांगचुक पर आरोप लगाया कि उनके उकसाने वाले बयानों ने प्रदर्शन को हिंसक बना दिया। उनकी NGO का FCRA लाइसेंस भी रद्द कर दिया गया और CBI जांच शुरू की गई है। बीजेपी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्षद ने भीड़ को भड़काया और राहुल गांधी पर विदेशी साजिश से जुड़े आरोप लगाए। विपक्ष ने पलटवार करते हुए कहा कि यह सब बीजेपी की नाकामी है, क्योंकि उन्होंने चुनावी वादे पूरे नहीं किए। अखिलेश यादव ने कहा कि बीजेपी ने वादा तोड़ा है और यही गुस्से का कारण है। वहीं ओमर अब्दुल्ला ने इसे कश्मीर जैसा धोखा बताया।
सोशल मीडिया की बहस
सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ गई है। #SaveLadakh और #LadakhMatters जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। कुछ लोग सोनम वांगचुक को देशभक्त बता रहे हैं तो कुछ उन्हें एंटी-नेशनल कह रहे हैं। हिंसा और आगजनी के वीडियो तेजी से वायरल हो रहे हैं।
तनाव के बीच कुछ सकारात्मक खबरें भी आई हैं। कर्गिल में कैंसर स्क्रीनिंग कैंप का आयोजन हुआ। केंद्र सरकार ने नुब्रा-जंस्कर ट्रांसमिशन लाइन प्रोजेक्ट के लिए लगभग 1925 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है। न्योमा में NDRF ने डिजास्टर मैनेजमेंट का कैंप लगाया। चीन सीमा पर भारत-चीन ट्रस्ट बिल्डिंग पेट्रोलिंग भी जारी है, लेकिन प्रदर्शन से इन विकास कार्यों की रफ्तार पर असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है।
आने वाले समय में हालात किस ओर जाएंगे यह संवाद पर निर्भर करेगा। 25 और 26 सितंबर की बैठकों से लोगों को उम्मीद है, लेकिन अगर ठोस समाधान नहीं निकला तो आंदोलन और तेज हो सकता है। 6 अक्टूबर की हाई पावर कमिटी बैठक पर सबकी निगाहें हैं।
लद्दाख की पहचान और संघर्ष
लद्दाख की आवाज़ आज पूरे देश में गूंज रही है। “Ladakh Matters Today” सिर्फ एक नारा नहीं है, बल्कि वहाँ की जनता की पहचान, संस्कृति और भविष्य की लड़ाई है। हिंसा किसी समस्या का हल नहीं है, लेकिन जनता की नाराज़गी और दर्द भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। अगर सरकार और स्थानीय नेता मिलकर समाधान निकालें तो यह आंदोलन देश के लिए एक मिसाल बन सकता है कि कैसे सीमांत इलाकों में सुरक्षा और स्थानीय अधिकार दोनों का संतुलन कायम किया जा सकता है।
लद्दाख अपडेट यहां से देख : https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2170941
World Pharmacist Day 2025: इतिहास, महत्व और भारत में फार्मासिस्ट की भूमिका