
अंतरिक्ष, यानी आसमान में तारों और ग्रहों की दुनिया। इंसान हमेशा से इस दुनिया को जानना चाहता है। अब इस बड़ी दुनिया में भारत का एक नया नाम जुड़ गया है – हमारे भारतीय वैज्ञानिक शुभांशु शुक्ला। हाल ही में वे Axiom-4 नाम के मिशन से इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर पहुँचे हैं। इससे पूरे देश का सिर गर्व से ऊँचा हो गया है। यह सिर्फ़ एक बड़ी वैज्ञानिक जीत नहीं, बल्कि एक ऐसे भारतीय की कहानी है जिसने तारों तक पहुँचने का सपना देखा और उसे पूरा किया।
एक आम शुरुआत, एक बड़ा सपना
शुभांशु शुक्ला का जीवन हमें सिखाता है कि अगर हम किसी चीज़ को ठान लें और उसके लिए कड़ी मेहनत करें, तो कोई भी सपना पूरा हो सकता है। उनके बचपन और पढ़ाई के बारे में बहुत ज़्यादा जानकारी तो नहीं है, लेकिन यह साफ़ है कि उन्हें अंतरिक्ष और विज्ञान से बहुत प्यार था, और इसी प्यार ने उन्हें यहाँ तक पहुँचाया। भारत में जहाँ विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में बहुत से काबिल लोग हैं, शुभांशु जैसे लोग उन लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा बन रहे हैं जो अंतरिक्ष में काम करना चाहते हैं।
बहुत कड़ी ट्रेनिंग और चुनाव
अंतरिक्ष में जाना कोई आसान काम नहीं होता। एक एस्ट्रोनॉट बनने के लिए सालों तक बहुत कड़ी ट्रेनिंग करनी पड़ती है। शरीर और दिमाग से बहुत मज़बूत होना पड़ता है, और विज्ञान की गहरी समझ होनी चाहिए। शुभांशु शुक्ला ने यकीनन इस मुश्किल ट्रेनिंग को पूरा किया होगा। इस ट्रेनिंग में बिना गुरुत्वाकर्षण वाली जगह पर रहने की ट्रेनिंग, अंतरिक्ष यान को समझना, किसी भी इमरजेंसी से निपटने का अभ्यास करना और वैज्ञानिक प्रयोग करने की तैयारी शामिल है। इस ट्रेनिंग से सिर्फ़ सबसे काबिल और समर्पित लोगों को ही चुना जाता है।
Axiom-4 मिशन और ISS तक का सफ़र
शुभांशु शुक्ला Axiom-4 मिशन के तहत ISS तक गए हैं। यह हमारे देश के लिए एक ऐतिहासिक पल है, जो भारत की बढ़ती अंतरिक्ष शक्ति और दूसरे देशों के साथ मिलकर काम करने की उसकी चाहत को दिखाता है। ISS इंसान के बनाए सबसे बड़े अजूबों में से एक है, जो पृथ्वी के चारों ओर घूमता रहता है। यह एक लैब जैसा है जहाँ कम गुरुत्वाकर्षण वाली जगह पर ख़ास वैज्ञानिक रिसर्च होती है।
ISS पर, शुभांशु और उनके साथ के दूसरे देशों के वैज्ञानिक कई तरह के प्रयोग करेंगे। इन प्रयोगों का मकसद इंसानी जानकारी को बढ़ाना है, जैसे:
- इंसानी सेहत: अंतरिक्ष में इंसानी शरीर पर क्या असर होता है, इसका अध्ययन करना। इससे पृथ्वी पर बीमारियों के इलाज में मदद मिल सकती है।
- नयी चीज़ें बनाना: ऐसे नए पदार्थ बनाना जो अंतरिक्ष जैसी मुश्किल जगहों पर भी काम कर सकें।
- जानवरों और पौधों का अध्ययन: अंतरिक्ष में पौधों और छोटे जीवों के बढ़ने का अध्ययन करना।
- धरती पर नज़र: जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण की दूसरी समस्याओं को समझने के लिए धरती का ध्यान से देखना।
इन प्रयोगों से जो जानकारी मिलेगी, वह भविष्य की लंबी अंतरिक्ष यात्राओं के लिए बहुत ज़रूरी होगी, जैसे चाँद और मंगल पर इंसानों को भेजना।
एक प्रेरणादायक कहानी
शुभांशु शुक्ला की यह बड़ी उपलब्धि भारत के लिए एक बहुत बड़ा सम्मान है। यह सिर्फ़ हमारे देश की वैज्ञानिक और तकनीकी तरक्की को ही नहीं दिखाती, बल्कि यह भी बताती है कि भारतीय लोग दुनिया में कितने काबिल हैं। उनकी कहानी भारत के लाखों बच्चों को बड़े सपने देखने और विज्ञान, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) के क्षेत्रों में अपना करियर बनाने के लिए प्रेरित करेगी।
शुभांशु शुक्ला जैसे वैज्ञानिकों की वजह से ही इंसान ब्रह्मांड के रहस्यों को सुलझाना जारी रखेगा और आने वाली पीढ़ियों के लिए नए रास्ते बनाएगा। उनका यह सफ़र सचमुच भारत के नारे ‘जय विज्ञान, जय अनुसंधान’ का एक जीता-जागता उदाहरण है। हम उन्हें उनके भविष्य के सभी कामों के लिए शुभकामनाएँ देते हैं।
Official website: NASA
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