दुर्गा पूजा, जिसे दुर्गोत्सव या शरदोत्सव के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म का एक प्रमुख और भव्य त्योहार है। यह माँ दुर्गा की शक्ति, साहस और करुणा की उपासना को समर्पित है। यह पर्व पूरे भारत में मनाया जाता है, लेकिन कोलकाता में इसकी भव्यता और उत्साह अद्वितीय है। कोलकाता की दुर्गा पूजा को 2021 में यूनेस्को ने अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का दर्जा दिया, जो इसकी वैश्विक पहचान को दर्शाता है। यह त्योहार नौ दिनों तक चलता है और इसमें व्रत, पूजा, पंडाल सज्जा, और सांस्कृतिक कार्यक्रम शामिल होते हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि कोलकाता में यह पर्व क्यों प्रसिद्ध है, इसके पीछे का रहस्य, नौ दिनों के व्रत के फल, और अन्य महत्वपूर्ण पहलू।
दुर्गा पूजा 2025: तिथियाँ और शुभ मुहूर्त
दुर्गा पूजा हिंदू पंचांग के अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है, जो सितंबर या अक्टूबर में आता है। 2025 में दुर्गा पूजा की तिथियाँ निम्नलिखित हैं:
- महalaya: 21 सितंबर 2025 (रविवार) – माँ दुर्गा का आह्वान और चक्षुदान।
- महा पंचमी: 27 सितंबर 2025 (शनिवार) – बिल्व निमंत्रण।
- महा षष्ठी: 28 सितंबर 2025 (रविवार) – बोधन और मूर्ति अनावरण।
- महा सप्तमी: 29 सितंबर 2025 (सोमवार) – नवपत्रिका पूजा।
- महा अष्टमी: 30 सितंबर 2025 (मंगलवार) – संधि पूजा और कुमारी पूजा।
- महा नवमी: 1 अक्टूबर 2025 (बुधवार) – महा आरती और भोग।
- विजयादशमी: 2 अक्टूबर 2025 (गुरुवार) – मूर्ति विसर्जन और सिंदूर खेला।
नोट: तिथियाँ स्थानीय पंचांग के आधार पर भिन्न हो सकती हैं। सटीक मुहूर्त के लिए स्थानीय पंडित से संपर्क करें।
कोलकाता में दुर्गा पूजा क्यों प्रसिद्ध है?

कोलकाता में दुर्गा पूजा की भव्यता और लोकप्रियता के कई कारण हैं, जो इसे विश्व प्रसिद्ध बनाते हैं:
- ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व:
- कोलकाता में दुर्गा पूजा की शुरुआत 16वीं शताब्दी में मानी जाती है, जब जमींदारों और राजपरिवारों ने इसे भव्य रूप से मनाना शुरू किया। उदाहरण के लिए, बारिशा के साबर्ण राय चौधरी परिवार ने 1610 में और शोभाबाजार राजबारी ने 1757 में दुर्गा पूजा शुरू की थी।
- 20वीं शताब्दी में बारोवारी (सार्वजनिक) पूजा की शुरुआत ने इसे जन-जन का उत्सव बना दिया। 1910 में भवानीपुर सनातन धर्मोत्साहिनी सभा ने पहली बार सार्वजनिक दुर्गा पूजा का आयोजन किया।
- कला और रचनात्मकता:
- कोलकाता के पंडाल अपनी थीम आधारित सजावट और कारीगरी के लिए प्रसिद्ध हैं। प्रत्येक वर्ष पंडालों में अनूठी थीम्स जैसे विश्व स्मारक, सामाजिक मुद्दे (जैसे जलवायु परिवर्तन), और पारंपरिक कला प्रदर्शित की जाती है। कुमर्तुली, कोलकाता का मूर्तिकारों का केंद्र, मिट्टी की मूर्तियों के लिए विश्वविख्यात है।
- पंडालों में धुनुची नृत्य, सांस्कृतिक नाटक, और संगीत प्रदर्शन इस उत्सव को और भी रंगीन बनाते हैं।
- सामुदायिक भागीदारी:
- कोलकाता में दुर्गा पूजा एक सामुदायिक उत्सव है, जिसमें सभी वर्गों और धर्मों के लोग शामिल होते हैं। 2022 में कोलकाता में लगभग 3,000 बारोवारी पूजाएँ आयोजित की गईं, जिनमें से 200 से अधिक का बजट एक करोड़ रुपये से अधिक था।
- पश्चिम बंगाल सरकार भी इस उत्सव को बढ़ावा देती है। 2025 में प्रत्येक पूजा समिति को 1,10,000 रुपये की सहायता दी जाएगी, साथ ही 75% बिजली बिल में छूट दी जाएगी।
- वैश्विक पहचान:
- यूनेस्को द्वारा 2021 में कोलकाता की दुर्गा पूजा को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का दर्जा मिलने से इसकी वैश्विक लोकप्रियता बढ़ी है।
- कोलकाता के पंडाल, जैसे देशप्रिया पार्क, बागबाजार, और कॉलेज स्क्वायर, पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
- आर्थिक प्रभाव:
- 2019 में कोलकाता की दुर्गा पूजा ने 32,000 करोड़ रुपये का आर्थिक योगदान दिया, जो पश्चिम बंगाल के जीडीपी का 2.58% था। यह कारीगरों, व्यापारियों और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है।
दुर्गा पूजा का रहस्य
दुर्गा पूजा के पीछे कई पौराणिक और सांस्कृतिक रहस्य हैं, जो इसे और भी रोचक बनाते हैं:

- महिषासुर वध:
- पौराणिक कथा के अनुसार, महिषासुर एक शक्तिशाली राक्षस था, जिसे ब्रह्मा से वरदान मिला था कि उसे कोई पुरुष नहीं मार सकता। सभी देवताओं ने अपनी शक्तियों को एकत्रित कर माँ दुर्गा का निर्माण किया, जिन्होंने नौ दिनों तक युद्ध के बाद दसवें दिन महिषासुर का वध किया। यह विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है।
- अकाल बोधन:
- रामायण के अनुसार, भगवान राम ने रावण पर विजय के लिए माँ दुर्गा की उपासना की थी। चूंकि यह पूजा वसंत के बजाय शरद ऋतु में की गई थी, इसे अकाल बोधन (असमय में आह्वान) कहा जाता है। यह कोलकाता में दुर्गा पूजा की शुरुआत का आधार बना।
- माँ दुर्गा का घर वापसी:
- बंगाली परंपरा में दुर्गा पूजा को माँ दुर्गा की अपने मायके (पृथ्वी) की यात्रा के रूप में देखा जाता है। माँ दुर्गा अपने चार बच्चों—लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश और कार्तिकेय—के साथ आती हैं, जिसे पारिवारिक पुनर्मिलन के रूप में मनाया जाता है।
- संधि पूजा का रहस्य:
- अष्टमी और नवमी के बीच की संधि पूजा का विशेष महत्व है। इस समय माँ दुर्गा ने चंड-मुंड राक्षसों का वध करने के लिए चामुंडा रूप धारण किया था। इस पूजा में 108 दीप जलाए जाते हैं और विशेष मंत्रों का जाप होता है।
नौ दिनों के व्रत के फल
दुर्गा पूजा के दौरान कुछ भक्त नौ दिनों तक व्रत रखते हैं, जिसे शारदीय नवरात्रि व्रत कहा जाता है। यह व्रत निम्नलिखित फल प्रदान करता है:
- आध्यात्मिक शक्ति:
- नवरात्रि के नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ रूपों (शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री) की पूजा की जाती है। प्रत्येक दिन का व्रत भक्तों को आध्यात्मिक शक्ति, आत्मविश्वास और सकारात्मक ऊर्जा देता है।
- सुख-समृद्धि:
- माँ दुर्गा की कृपा से भक्तों को सुख, समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है। यह व्रत परिवार में शांति और धन-धान्य की वृद्धि करता है।
- पापों का नाश:
- नवरात्रि व्रत और चंडी पाठ करने से भक्तों के पाप नष्ट होते हैं और मन की शुद्धि होती है। यह व्रत आत्म-संयम और नैतिकता को बढ़ावा देता है।
- रक्षा और स्वास्थ्य:
- माँ दुर्गा को रक्षा की देवी माना जाता है। व्रत रखने से भक्तों को नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा और शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
- कन्या पूजा का महत्व:
- अष्टमी और नवमी पर कन्या पूजा की जाती है, जिसमें नौ कन्याओं को माँ दुर्गा का रूप मानकर पूजा जाता है। इससे भक्तों को पुण्य और माँ की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
व्रत की विधि:
- व्रत के दौरान सात्विक भोजन (बिना लहसुन-प्याज) खाया जाता है। कुछ लोग केवल फल और दूध लेते हैं, जबकि कुछ पूर्ण उपवास रखते हैं।
- सुबह-शाम माँ दुर्गा की पूजा, मंत्र जाप (जैसे “ॐ जयंती मंगला काली…”) और सप्तशती पाठ किया जाता है।
- व्रत का समापन नवमी या दशमी पर हवन और कन्या पूजा के साथ होता है।
अन्य महत्वपूर्ण पहलू
- सांस्कृतिक उत्सव:
- कोलकाता में दुर्गा पूजा एक सांस्कृतिक उत्सव है। पंडालों में थीम आधारित सजावट, धुनुची नृत्य, और सांस्कृतिक प्रदर्शन जैसे नाटक और संगीत आयोजित किए जाते हैं।
- भोग में खिचड़ी, लाबड़ा, और मिठाइयाँ जैसे रसगुल्ला और मिष्टी दोई शामिल हैं।
- सामाजिक एकता:
- यह पर्व सभी धर्मों और वर्गों के लोगों को एक मंच पर लाता है। पंडालों में सभी का स्वागत होता है, जिससे सामाजिक एकता बढ़ती है।
- पर्यावरणीय जागरूकता:
- 2025 में कई समुदाय पर्यावरण-अनुकूल मूर्तियों और जैविक रंगों का उपयोग करेंगे। यह पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है।
- वैश्विक उत्सव:
- कोलकाता की दुर्गा पूजा की प्रसिद्धि के कारण यह लंदन, न्यूयॉर्क, टोरंटो और सिंगापुर जैसे शहरों में भी मनाया जाता है। वहाँ भारतीय समुदाय पंडाल सजाते हैं और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
निष्कर्ष
दुर्गा पूजा 2025 कोलकाता में एक बार फिर भव्यता और भक्ति का अनूठा संगम होगा। 21 सितंबर से 2 अक्टूबर तक चलने वाला यह पर्व माँ दुर्गा की शक्ति और करुणा का उत्सव है। कोलकाता में इसकी प्रसिद्धि इसके ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व के कारण है। नौ दिनों का व्रत भक्तों को आध्यात्मिक शक्ति, सुख-समृद्धि और सुरक्षा प्रदान करता है। यह पर्व परंपरा और आधुनिकता का मिश्रण है, जो पर्यावरण जागरूकता और वैश्विक एकता को भी बढ़ावा देता है। माँ दुर्गा सभी भक्तों को साहस, शांति और समृद्धि प्रदान करें। जय माँ दुर्गा!