इस्लामाबाद: पाकिस्तान और सऊदी अरब ने हाल ही में एक रणनीतिक पारस्परिक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसने अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है। इस समझौते के तहत, किसी भी एक देश पर होने वाले हमले को दोनों देशों पर हमला माना जाएगा। हालांकि, इस समझौते को लेकर सबसे बड़ी चर्चा पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को लेकर हो रही है।

परमाणु क्षमता पर पाकिस्तानी रक्षा मंत्री का बयान
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने एक टीवी इंटरव्यू में साफ तौर पर कहा है कि पाकिस्तान के पास जो भी क्षमताएं हैं, वह इस समझौते के तहत सऊदी अरब के लिए उपलब्ध होंगी। उनके इस बयान को कई विश्लेषक इस बात का सीधा संकेत मान रहे हैं कि पाकिस्तान ने सऊदी अरब को अपनी परमाणु छतरी के नीचे ला दिया है। यह पहली बार है जब इस्लामाबाद ने इस तरह का कोई खुला बयान दिया है।
भारत और इजरायल की चिंता
यह समझौता भारत और इजरायल जैसे देशों के लिए चिंता का विषय बन गया है। विश्लेषकों का मानना है कि यह समझौता सऊदी अरब की आर्थिक शक्ति को पाकिस्तान की सैन्य और परमाणु क्षमता से जोड़ता है। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, यह कदम इजरायल के लिए एक संकेत है, जिसे लंबे समय से मध्य पूर्व का एकमात्र परमाणु-सशस्त्र राष्ट्र माना जाता है। वहीं, भारत सरकार ने भी इस समझौते के निहितार्थों का अध्ययन करने की बात कही है।
नाटो की तर्ज पर समझौता?
पाकिस्तानी अधिकारियों ने इस समझौते को नाटो (NATO) की तर्ज पर एक रक्षात्मक व्यवस्था बताया है। उनका कहना है कि यह समझौता किसी भी देश पर आक्रामक हमला करने के लिए नहीं है, बल्कि दोनों देशों की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए है। यह समझौता दोनों देशों के बीच दशकों पुराने सैन्य सहयोग को एक औपचारिक रूप देता है। यह ऐसे समय में हुआ है जब खाड़ी के देश अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिका पर अपनी निर्भरता कम करने के बारे में सोच रहे हैं।