ट्रंप ने H-1B वीजा:
नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा कार्यक्रम में बड़े बदलाव की घोषणा की है, जिसके तहत नए आवेदकों पर $100,000 (लगभग 83 लाख रुपये) का एकमुश्त शुल्क लगाया जाएगा। यह फैसला शुरुआत में वार्षिक शुल्क के रूप में घोषित किया गया था, जिससे तकनीकी उद्योग में भारी भ्रम और अफरा-तफरी मच गई। हालांकि, व्हाइट हाउस ने बाद में स्पष्ट किया कि यह शुल्क केवल नए आवेदनों पर एक बार का है और मौजूदा वीजा धारकों या नवीनीकरण पर लागू नहीं होगा।
H-1B वीजा अमेरिकी कंपनियों को विदेशी कुशल श्रमिकों, जैसे वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और आईटी विशेषज्ञों को स्पॉन्सर करने की अनुमति देता है। यह कार्यक्रम छह साल तक के लिए वैध होता है और मुख्य रूप से तकनीकी क्षेत्र में उपयोग किया जाता है। हर साल लगभग 4 लाख H-1B वीजा जारी किए जाते हैं, जिनमें से दो-तिहाई नवीनीकरण होते हैं। भारतीय नागरिक इस कार्यक्रम के सबसे बड़े लाभार्थी हैं, जो लगभग 75% अनुमोदनों का हिस्सा रखते हैं।

शुक्रवार को अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने घोषणा की कि H-1B वीजा पर $100,000 का वार्षिक शुल्क लगाया जाएगा, जो नए और नवीनीकरण दोनों पर लागू होगा। इस खबर से अमेरिकी कंपनियों में हड़कंप मच गया। अमेज़न, जेपी मॉर्गन जैसी कंपनियों ने अपने H-1B वीजा धारक कर्मचारियों को सलाह दी कि वे देश छोड़कर न जाएं और जो बाहर हैं, वे जल्दी लौट आएं। कुछ रिपोर्टों में कर्मचारियों के विमान से उतारने की घटनाएं भी बताई गईं।
ट्रंप प्रशासन का तर्क है कि H-1B कार्यक्रम का दुरुपयोग हो रहा है, जहां अमेरिकी श्रमिकों को कम वेतन वाले विदेशी श्रमिकों से बदल दिया जा रहा है। ट्रंप ने कहा कि यह बदलाव अमेरिकी श्रमिकों की रक्षा करेगा और कंपनियों को अमेरिकियों को नौकरी देने के लिए प्रोत्साहित करेगा। साथ ही, उन्होंने $1 मिलियन (लगभग 8.3 करोड़ रुपये) का “गोल्ड कार्ड” रेजिडेंसी कार्यक्रम भी शुरू किया है, जो अमीर आव्रजकों के लिए फास्ट-ट्रैक वीजा प्रदान करेगा।
हालांकि, शनिवार को व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलाइन लेविट ने स्पष्ट किया, “यह वार्षिक शुल्क नहीं है। यह केवल नए आवेदनों पर एक बार का शुल्क है, जो पेटिशन पर लागू होता है।” उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा H-1B धारक बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के देश छोड़कर वापस आ सकते हैं। इस स्पष्टीकरण से तकनीकी कंपनियों को कुछ राहत मिली, लेकिन छोटे व्यवसायों और स्टार्टअप्स पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
इस फैसले का सबसे अधिक असर भारतीय पेशेवरों पर पड़ेगा, क्योंकि वे H-1B वीजा के प्रमुख उपयोगकर्ता हैं। भारतीय विदेश मंत्रालय ने चिंता व्यक्त की है और कहा कि कुशल प्रतिभाओं की गतिशीलता नवाचार और धन सृजन में योगदान देती है। साथ ही, परिवारों पर मानवीय प्रभाव को ध्यान में रखते हुए अमेरिकी अधिकारियों से अपील की है। एलन मस्क जैसे तकनीकी उद्यमियों ने चेतावनी दी है कि H-1B पर प्रतिबंध अमेरिका में प्रतिभा की कमी पैदा कर सकता है।
यह कार्यकारी आदेश रविवार से प्रभावी हो गया है और इसे कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह अमेरिकी तकनीकी क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित करेगा, क्योंकि कई कंपनियां घरेलू स्तर पर पर्याप्त कुशल श्रमिक नहीं पा रही हैं। ट्रंप प्रशासन का दावा है कि बड़े कंपनियां इस बदलाव का समर्थन कर रही हैं, लेकिन उद्योग में मिश्रित प्रतिक्रियाएं हैं।
यह बदलाव अमेरिकी आव्रजन नीति में एक बड़ा कदम है, जो “अमेरिका फर्स्ट” की विचारधारा को मजबूत करता है, लेकिन वैश्विक प्रतिभा आकर्षण पर सवाल उठाता है।